फागुन आ गया, होली आ गई, और देश की सियासत का मौसम भी इस वक्त फागुनी ही है। कहीं आरोपों के गुब्बारे फोड़े जा रहे हैं, कहीं पुरानी बातों का गुलाल उड़ाया जा रहा है और कहीं दावों की पिचकारियां चलाई जा रही हैं। तीन राज्यों में चुनाव हो गए, और अब बाकी के छह राज्यों में चुनावी माहौल है। अब राजनीति का वो दौर तो रहा नहीं कि चुनाव आयोग चुनाव की घोषणा करे।
राजनैतिक दल घोषणापत्र तैयार करें। फिर बैनर-पोस्टर के जरिए चुनाव प्रचार में जुट जाएं। रैलियां हों, सभाएं हों, जिनमें सत्ताधारी अपनी उपलब्धियां गिनाकर फिर से जनादेश मांगे और विपक्षी दल खुद को एक मौका देने की अपील जनता से करे। अब तो चुनाव का मतलब है, सभी की व्यस्ततता। सभी से यहां मतलब है, देश की संवैधानिक संस्थाएं, पुलिस-प्रशासन, जांच एजेंसियां, मीडिया, स्वतंत्र-निष्पक्ष कहलाने वाले राजनैतिक विचारक, सर्वे एजेंसियां, धार्मिक दुकानदार और कारोबारी। सभी के पास कितना काम चुनाव के दौरान बढ़ जाता है। सत्ता बनी रहे, सत्ताधारी अमर रहे, इस तर्ज पर वे काम करेंगे, तो उनकी कुर्सी और बैंक बैलेंस भी अमर रहेंगे। क्या हुआ, अगर भारतीय संस्कृति में जीवन को क्षणभंगुर कहा गया है। सत्ता तो जीवन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
भारतीय संस्कृति में तो ये भी कहा गया है कि-
न त्वहम् कामये राज्यम् न स्वर्गम् न पुनर्भवम्।
कामये दु:खतप्तानम् प्राणिनामार्तिनाशनम्।।
अर्थात न तो मुझे राज्य की कामना है और न ही स्वर्ग चाहिए, न ही पुनर्जन्म चाहिए। मुझे तो दु:ख में जलते हुए प्राणियों की पीड़ा का नाश करने की शक्ति चाहिए।
अब इस ज्ञान पर हमारे नेता चलना शुरु कर दें, तो फिर चुनाव होना ही बंद हो जाएंगे। जब नेताओं को राज्य की कामना ही नहीं रहेगी, तो फिर चुनाव जीतने की कोशिश भी वे नहीं करेंगे। और हार जाने पर तिकड़म लगाकर सत्ता में भी नहीं आएंगे। जिसे चुनाव से पहले भ्रष्टाचारी कहा, चुनाव के बाद उसी के साथ मिलकर सरकार भी नहीं बनाएंगे, जैसा अभी मेघालय में हुआ। अगर नेताओं को केवल यह शक्ति चाहिए कि वे दुखी प्राणियों की पीड़ा का नाश कर सकें, तो फिर वे राजनीति कैसे करेंगे। जब तक लोग दुखी रहेंगे, तभी तक तो उनके दुख दूर करने का दावा किया जा सकेगा। जो चीज रहेगी ही नहीं, उसका नाश करने के लिए मां गंगा के बेटों को अवतार क्यों लेना पड़ेगा। और वैसे भी पीड़ा का नाश करने की शक्ति वाला प्रभाग तो देश की सियासत में बाबाओं ने संभाला हुआ है।
वे राजनीति में होकर भी सत्ता में नहीं होते, इस बात का मलाल उन्हें कहीं न कहीं होता होगा। हर भगवाधारी तो मुख्यमंत्री नहीं बन पाता। तो इसलिए ये बाबा अब देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम छेड़े हुए हैं। एक बार ऐसा हो जाए, तो संविधान खत्म और फिर देश में विस्मृत की जा चुकी स्मृतियों को वापस लाया जाएगा, उन्हीं के हिसाब से फिर समाज और देश चलेगा। खैर, ये सब अभी नहीं हो रहा, क्योंकि संविधान बचा हुआ है। वर्ना होली में तो होलिका दहन के नाम पर लकड़ियों के साथ कई बार जरूरी चीजें भी जला दी जाती हैं। अब संविधान बचा है, तो उसके हिसाब से चुनाव भी अब तक हो ही रहे हैं।
चुनाव में संवैधानिक संस्थाओं के साथ-साथ जांच एजेंसियां भी काम में जुट गई हैं। गैर-भाजपा शासित राज्यों में कहीं सीबीआई सक्रिय दिख रही है, कहीं ईडी व्यस्त हो गई है। अब अगले साल यानी 2024 के चुनावों में इन एजेंसियों के पास कितना काम आ जाएगा, ये अनुमान लगाना भी कठिन नहीं है। वैसे भी राहुल गांधी ने जब से ब्रिटेन में ये कह दिया कि भारत में हमेशा भाजपा की सत्ता नहीं रहेगी, देश में मुश्किल और बढ़ गई है।
राहुल गांधी को समझना चाहिए कि बुरा न मानो होली है, वाला जुमला दूसरों पर अच्छा लगता है, खुद पर उसे कोई आजमाना नहीं चाहता। अब ब्रिटेन जाकर वहां से भी भाजपा और संघ को आईना दिखाने की क्या जरूरत। राहुल गांधी जब तक देश में घूम रहे थे, आईटी सेल वालों को तो रोज ही उनके भाषण और वीडियो देखने पड़ रहे थे। जिस व्यक्ति को आप अपने दुश्मन मानें, उसके वीडियो रोज देखने में कितनी मुश्किल होती होगी, ये कोई आईटी सेल वालों से पूछे। अब राहुल गांधी विदेश गए, तो वहां भी भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। भई, ब्रिटेन गए, तो लंदन घूमते, मैडम तुसाद की गैलरी में मोम के पुतलों को देखते और आश्चर्य करते कि अब इंसान और पुतले कितने एक जैसे हो गए हैं।
दोनों को किसी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता। लॉर्ड्स के मैदान में जाते और वहां दांव-पेंच की बारीकियों पर विचार करते। साफ सुथरी टेम्स को बहते देखते और मां गंगा को याद करते। लंदन आई में बैठकर सबसे ऊपर पहुंचते, फिर नीचे आते और फिर ऊपर जाने का रोमांच हासिल करते, ठीक कांग्रेस की तरह। लेकिन नहीं राहुल गांधी वहां से भी वही बातें किए जा रहे हैं, जो उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में देश के हजारों-लाखों लोगों से सैकड़ों बार की। जो बातें राहुल देश के लोगों को बता चुके हैं, भला उन्हीं को ब्रिटेन जाकर बताने की क्या जरूरत। इस तरह तो सारी दुनिया को पता चल रहा है कि भाजपा क्या है, आरएसएस क्या है, कैसे देश में सारी जगहों पर संघ की सोच का कब्जा हो गया है। भाजपा वाले इसलिए बुरा मान गए हैं। वो जानते हैं कि होली के वक्त मजाक पर बुरा नहीं माना जाता, सच्ची बातों पर तो बुरा लग ही जाता है।
खैर होली पर बुरा मानने वालों और न मानने वालों सभी के लिए संदेश है कि-
चले भी आओ भुला कर सभी गिले-शिकवे
बरसना चाहिए होली के दिन विसाल का रंग
- अज़हर इक़बाल